"अपूर्ण कामना"
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मैं न जाऊँगा जगत से
मृत्यु जब देगी निमंत्रण।
भूल अपने प्रियजनों को
स्नेहपूरित लोचनों को
छोड़ पाऊँगा नहीं मैं
सृष्टि का प्रत्येक कण-कण।
क्या मिलेगा मोक्ष पाकर ?
इस जगत से दूर जाकर
मैं न माँगूँ अपर जीवन
सौंप दो मुझको यही क्षण।
बोल दूँगा -'है अभी गति
ना हुयी है भाव की क्षति
आयु में अवनमन किंतु,
श्वास में है शेष हर्षण '।
मृत्यु मानेगी नहीं जब
क्या करूँगा हाय ! मैं तब
हार कर जाना पड़ेगा
'प्राण पर किसका नियंत्रण ' ?
मैं न जाऊँगा जगत से
मृत्यु जब देगी निमंत्रण।
©अनुकल्प तिवारी 'विक्षिप्तसाधक'
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बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना 👌👌😊
जवाब देंहटाएंधन्यवादसहित अनंताभार आपको
हटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंधन्यवादसहित अनंताभार आपको
हटाएंबेहतरीन👌👌👌
जवाब देंहटाएंधन्यवादसहित अनंताभार आपको
हटाएं👌👌👌 😊
जवाब देंहटाएंनिशब्द हूँ भाई
जवाब देंहटाएंसींचता होगा आजीवन उपवन को तब कालांतर में पाता होगा तुम जैसा पुष्प
हृदय से आभार आपका
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