● अंतिम आह्वान ●
लौट आओगे क्या तुम देव ?
करूँगा जब अंतिम आह्वान।
मृत्यु के महा -सिन्धु में डूब ,
लुप्त होने को होंगे प्राण
सुप्त होने को होगा गात्र ,
और आकुल होंगे दृग -द्राण
श्वास की ध्वनियों वाली वेणु ,
भुला देगी जब अपनी तान।
सृष्टि के कोलाहल से हीन ,
शून्यता को करके स्वीकार
श्वेत परिधान -पुष्ट शुचि शांत ,
शुष्क काष्ठों का चुन आधार
लेट जायेगी जब अनुभूति ,
अग्नि -शय्या पर कर अभिमान।
अतः जब हो जायेगी नष्ट ,
भस्म बन भौतिकता की गंध
मुक्त हो जायेंगे जब प्राण ,
भूलकर सकल सृष्टि -संबंध
उसी क्षण महाद्वैतता हेतु ,
स्वयं में करने अंतर्ध्यान।
लौट आओगे क्या तुम देव ?
करूँगा जब अंतिम आह्वान।
© अनुकल्प तिवारी 'विक्षिप्त '
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