● कोकिला से ●


कूक कर मीठे स्वरों में
पूछ मत पीड़ा हृदय की

कोकिला ! मैं क्या बताऊँ
प्रीति निज कैसे जताऊँ
जान पाया ही नहीं वह,
भावना मेरे प्रणय की।

आज रोने दो न रोको
भूल जाने दो न टोको
बाँट पाओगी नहीं तुम,
वेदना विस्तृत निलय की।

चल दिया वह छोड़ पथ पर
बिन बताये,उर व्यथित कर
अल्प भी आशा न थी इस,
निठुर आगामी प्रलय की।

व्यग्र उर ने तोड़ डाला
लोचनों की स्वप्न माला
क्योंकि अब तो व्यर्थ ही थी,
सस्मिता स्वप्निल वलय की।

कूक कर मीठे स्वरों में
पूछ मत पीड़ा हृदय की।

© अनुकल्प तिवारी 'विक्षिप्तसाधक'


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