● व्यर्थता ●

व्यर्थ है जीवन चरण जब मृत्यु अन्त्य -प्रक्रिया है। गात्र का निर्माण करके चेतना औ ' प्राण भरके नाश कर देता वही क्यों यह सृजन जिसने किया है ? सौंपकर सुकुमार संसृति छीन लेते क्यों बना स्मृति शून्य है परिणाम जिसका देव ! यह कैसी क्रिया है ? मिथ्य है सुख के सभी क्षण तदपि लगते वर विलक्षण किंतु सत्यासत्य मैनें स्वयं को समझा दिया है। आह ! उर विक्षिप्त उर ने और उर के रिक्त सुर ने भूल कर आनंद , पीड़ा- मार्ग को अपना लिया है। व्यर्थ है जीवन चरण जब मृत्यु अन्त्य -प्रक्रिया है। © अनुकल्प तिवारी 'विक्षिप्तसाधक'