● वेदना के बंधन ●


आज आनंदित हृदय है
वेदना के बंधनों में।

फोड़ कर दर्पण हृदय का
साक्ष्य मत माँगो प्रणय का
स्पर्श कर पाते नहीं क्यों
प्रेम मेरे क्रंदनों में ?

'इष्ट ' तुम बिन है अधूरा
प्राण का यह तानपूरा
नाद बनकर गूँजते हो
रागिनी के स्पंदनों में।

हाय ! तुमने भी न देखा
लोचनों में धूम्र रेखा
जल रही दावाग्नि कोई
स्वप्न के पुष्पित वनों में।

छोड़ दो पाषाण काया
जोड़ लो यह भग्न छाया
और हो जाओ प्रतिष्ठित
कल्पना के स्यंदनों में।

आज आनंदित हृदय है
वेदना के बंधनों में।

© अनुकल्प तिवारी 'विक्षिप्तसाधक '
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