● अन्त्य गान ●

'बुद्ध ' तेरा गान मुझसे अब न गाया जा रहा है। छिन्न है उर की व्यवस्था हाय ! यह कैसी अवस्था ज्ञात ना मेरे हृदय में क्या समाया जा रहा है ? क्षीण होती जा रही स्मृति अव्यवस्थित श्वास की गति नष्ट कर आलोक उर का ध्वांत छाया जा रहा है। फोड़ दी वीणा नियति ने रागिनी छीनी विरति ने अब व्यथा का पात्र मुख से ना लगाया जा रहा है। साध मेरी ना सहेजे औ ' न ही संदेश भेजे प्रिय ! हमारे मिलन का क्षण आ रहा या जा रहा है। 'बुद्ध ' तेरा गान मुझसे अब न गाया जा रहा है। © अनुकल्प तिवारी 'विक्षिप्तसाधक' •••••••••••🌺🌺🌺•••••••••••