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जून, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

● अन्त्य गान ●

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'बुद्ध ' तेरा गान मुझसे अब न गाया जा रहा है। छिन्न है उर की व्यवस्था हाय ! यह कैसी अवस्था ज्ञात ना मेरे हृदय में क्या समाया जा रहा है ? क्षीण होती जा रही स्मृति अव्यवस्थित श्वास की गति नष्ट कर आलोक उर का ध्वांत छाया जा रहा है। फोड़ दी वीणा नियति ने रागिनी छीनी विरति ने अब व्यथा का पात्र मुख से ना लगाया जा रहा है। साध मेरी ना सहेजे औ ' न ही संदेश भेजे प्रिय ! हमारे मिलन का क्षण आ रहा या जा रहा है। 'बुद्ध ' तेरा गान मुझसे अब न गाया जा रहा है। © अनुकल्प तिवारी 'विक्षिप्तसाधक' •••••••••••🌺🌺🌺•••••••••••

● वेदना के बंधन ●

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आज आनंदित हृदय है वेदना के बंधनों में। फोड़ कर दर्पण हृदय का साक्ष्य मत माँगो प्रणय का स्पर्श कर पाते नहीं क्यों प्रेम मेरे क्रंदनों में ? 'इष्ट ' तुम बिन है अधूरा प्राण का यह तानपूरा नाद बनकर गूँजते हो रागिनी के स्पंदनों में। हाय ! तुमने भी न देखा लोचनों में धूम्र रेखा जल रही दावाग्नि कोई स्वप्न के पुष्पित वनों में। छोड़ दो पाषाण काया जोड़ लो यह भग्न छाया और हो जाओ प्रतिष्ठित कल्पना के स्यंदनों में। आज आनंदित हृदय है वेदना के बंधनों में। © अनुकल्प तिवारी 'विक्षिप्तसाधक ' •••••••••••••••••••🍁🍁🍁••••••••••••••••••

"अपूर्ण कामना"

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...........🌺🌺🌺.............. मैं न जाऊँगा जगत से मृत्यु जब देगी निमंत्रण। भूल अपने प्रियजनों को स्नेहपूरित लोचनों को छोड़ पाऊँगा नहीं मैं सृष्टि का प्रत्येक कण-कण। क्या मिलेगा मोक्ष पाकर ? इस जगत से दूर जाकर मैं न माँगूँ अपर जीवन सौंप दो मुझको यही क्षण। बोल दूँगा -'है अभी गति ना हुयी है भाव की क्षति आयु में अवनमन किंतु, श्वास में है शेष हर्षण '। मृत्यु मानेगी नहीं जब क्या करूँगा हाय ! मैं तब हार कर जाना पड़ेगा 'प्राण पर किसका नियंत्रण ' ? मैं न जाऊँगा जगत से मृत्यु जब देगी निमंत्रण। ©अनुकल्प तिवारी 'विक्षिप्तसाधक' ............🌺🌺🌺.............